Mar 11, 2006

तुम्हारी याद

आखिर कब तक
झोंकता रहूँगा मैं.
स्वयं को इस
आग में?
जो ना जाने कितने
जन्मो से जलती
आ रही है.
कभी न ख़त्म होने
वाली आग.

रह-रहकर भड़क
उठती है सीने
में.
धधकती है तो
कभी थमती ही नहीं.
परिणाम.
सुलग रहा हूँ
मैं हरपल
तुम्हारी याद में.

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