Aug 29, 2015

तुम्हारी मेरी बातें

उठे तो कुछ ऐसे 
कि जैसे 
इतवार की शिथिल सुबह . 

फिर ठहर जाय 
कि जैसे 
यादों में बिखरी इक दोपहर . 

और थमें तो इस तरह 
कि जैसे 
किसी के आने की आतुरता . 

दिन और रात 
कल और आज 
सुखी और गीली
लाल और पीली
यूँही बस चलती रहें 
तुम्हारी मेरी बातें.