Nov 26, 2008

मुर्खता की पराकाष्ठा

शाम होने को है,
दिये नही जलाये,
चूल्हा नही फूँका।
बस चारपाई बिछाई,
और करने लगे इंतज़ार।

इंतज़ार :-
उन दिनों का,
जो जल - बुझ चुके।
उन लम्हों का,
जो मर चुके।
उन जीवों का,
जो नश्वरता लाँघ चुके।

अक्ल का वरदान,
लुटाने के बाद।
बेसहारा,
जर्जर,
अकेली,
बिछाई चारपाई,
और सोचने लगी की कुछ बदले।