Mar 3, 2006

चिंतित : प्रत्येक क्षण

तुम्हे भूलना ही श्रेयस्कर है अब
दोनों के लिए.
पर जो कसक उत्पन्न होती है
कल्पनामात्र से
क्या वो शक्ति देगी?
अलग पथ पर
अलग दिशा में
पृथक पृथक
बढ़ने को?

कोशिश मैंने की है कई बार
अकेले ही.
पर जो टीस प्रकट होती है
मस्तिष्क में
क्या वो जीने देगी?
दुसरे साथी के साथ
दूसरी दुनिया में
कदम कदम
चलने को?

अनिभिज्ञ नहीं हूँ सच से,
देख सकता हूँ.
पर जो प्रचंड कडुवाहट होगी
हर सांस में
क्या वो चेतनाशुन्य नहीं करेगी?
प्रत्येक क्षण
प्रत्येक दिवस
घुट घुट
मरने को?

वो कहते हैं की
जो शुरू हुआ है उसका
अंत सुनिश्चित है.
बस अब एहसास हुआ
मैं क्यों हूँ चिंतित.

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