Jun 19, 2011

तुम्हारी धुनें


इन धुनों में 
ऐसा क्या है? 
जो इक तरंग जगा 
देता है इन सांसों में. 

मन कि डूबती हुई 
स्थिरता जीवंत हो 
उठती है. 
आँखों का पथरीला पण 
पिघलने लगता है. 
हवाओं का स्पर्श भी 
महसूस होता है मुझे. 

और मैं गुनगुनाने लगता हूँ 
तुम्हारी धुनें. 

सुबह के पांच बजे

कौन हूँ मैं? 
एक बच्चा जो 
कोशिश कर रहा है 
अपने टूटे खिलौने को 
नया जीवन देने की 
या कि 
एक बूढा जो 
देख नहीं सकता 
सुन नहीं सकता 
चल फिर नहीं सकता 
बस कर सकता है तो यह 
कि चारपाई पैर लेट के 
पंखों के डैनो को घूमता देखे 
और करे इंतज़ार 
उसके और 
अपने रुकने का. 

कौन हूँ मैं? 
ख़त्म होती रात की 
बैंगनी चादर? जो 
फैली है समस्त आकाश में, 
बदलती रंग 
सूरज की हर किरण के साथ
या कि 
शाम कि बिखरी धुल 
जो 
एक जिद पे अड़ी है 
रूठी है 
नाराज़ है 
और शायद इसलिए 
स्थिर होने का नाम नहीं लेती. 

आखिर कौन हूँ मैं? 

Feb 6, 2011

और मैं

वही गर्मियों का मौसम 
आया और लाया 
पुराना व्यभिचार . 
साथ में बंधा 
क्षणभंगुर उल्लास 
अनवांछित उपहास 
इक असीमित,
पीड़ित एहसास. 
और इक वेदना का 
प्रकार. 
वही वेदना जो 
जीवित है जन्म से,
कहती हर परिवर्तित रूप में 
कि
कुछ नया करो. 

"और मैं"
उसी तरह करता 
सर्दियों का इंतज़ार. 

Jan 1, 2011

नया साल

एक बेचैनी सी है 
इस मन में कहीं. 

हकलाती, 
टूटते शब्दों को 
गुनगुनाती, 
थोड़ी खुश, 
थोड़ी घबराई, 
थोड़ी व्याकुल 
थोड़ी पराई. 

उत्सुक 
इस तारीख पर 
जो भर लायी है 
उम्मीदों को अपनी 
मुट्ठी में. 

अब इंतज़ार है 
की बस मुट्ठी खुले 
और बिखेर दे 
जीने का उत्साह 
मुझमें 
और सबमें.