Dec 7, 2008

आना या ना आना

एक समय बाद,
रौशनी का मुरझाना,
बच्चों का बौराना,
और आवाजों का ठिकाना,
मिट जाना।
लेकिन वही पुराना,
तुम्हारा,
आना या ना आना।

फिर,
सोच का सिमटना,
व्यभिचार का पनपना,
चरित्र का हकलाना,
बौखलाना।
लेकिन वही पुराना,
तुम्हारा,
आना या ना आना।

अब,
इंतज़ार का सिसकना,
धैर्य का बिलखना,
करवटों की उत्तेजना,
और सबका यही पूछना की,
नींद,
तुम्हारी हट को कैसे मनाना।

Dec 2, 2008

आतंक का अट्टहास

अलसाते हुए ज़िन्दगी ने,
खोली,
जब आँखें,
ली अंगड़ाई,
और किया आविर्भाव इस दुनिया में।
तब,
सुनाई दी खिलखिलाहट।

ज़िन्दगी ने कुछ रूप,
बदले,
हुई विकसित,
मस्तिष्क,
और शरीर से।
तब सुनाई दिया रुंदन।

ज़िन्दगी हुई पड़ी है,
विकृत,
कृतघ्न,
और अग्रसर विनाश की तरफ़ आज।
तब,
गूंजता सुनाई देता है सिर्फ़ क्रूर अट्टहास।