Apr 5, 2013

मैं कल ना आऊंगा


कहने को 
ईंट की चार दिवारें
और एक छत पर
जिसके ४८२ sq ft में 
आज छोड़े जा रहा हूं 
अपना सब कुछ । 

कल ना आऊ़गा 
वापस मैं रोज़ की तरह । 
अब ना होंगी वो
बातें, 
दुलार, 
खामोश रातें और
भीगी बरसातें । 

तुम भी जुड़ गये 
आज उस 
बैडमिंटन के रैकेट, 
होली की वो स्टील वाली पिचकारी,
MME के टूटे बैट 
और चंदा मामा की उन 
अनेक किताबों से 
जिसे वो पुराना 
घर बैठा है संजोये 
सिर्फ मेरी स्मृतियों में ।

काश कि तुम बोल पाते 
और खत्म करते मेरे 
जाने का ये सिलसिला ।