Jun 30, 2020

चऊतरे पे

सुबह-सुबह, 
चऊतरे पे,
ऊ सरऊ उठतै,
झाड़ू फेरत रहिन,
झाड़ा जाऐ के बाद। 

बोलत कुच्छो नाही। 
अइसे की जईसे,
चौधरी बने बैइठे, 
इतरावत हैं।  

और अगर तुम कुच्छो बोल देयो, 
तो बस पिरपिराए लगि।
बुढ़ऊ के आवाज तो निकली ना,
रत्ती भर,
बस गुर्राई कऊनो बिलार जैसन।

एक दिन एक कुकरवा हग दीहिस
चऊतरे पे।
जौन तहलका मचाएस ऊ सुवेरे-सुवेरे। 
गंगा माई बहवाए दीहिस,
चऊतरे पे।
सब मुहल्लौ धुल गवा ई चक्कर में। 

एक दिन एक मजूर सोई गवा ओके 
चऊतरे पे।
भाई ई किचाइन मचाएस ऊ सुवेरे-सुवेरे। 
मजुरवा सर पटक दीहिस और बोलिस “अब ना आबे कभी ई 
चऊतरे पे”।
सन्नाटा जबरन छवाई गवा ई चक्कर में। 

एक रात ओकर लड़कवा पीकर लोटत रहा
चऊतरे पे।
बाप रे बाप, ऐसन बवाल किहिस ऊ सुवेरे-सुवेरे। 
कोर्ट-कचहरी सब नाप दीहिस,
चऊतरे पे।
बचौना घर से भाग गवा ई चक्कर में। 

आजै के दिन, औंधा लेटा सोवत रहा ऊ 
चऊतरे पे।
सबहे जनी आइन ऊंहाँ सुवेरे-सुवेरे। 
जौऊन चल ना पाइस ऊहु आइके माथा टेकिस,
चऊतरे पे।
ऊ चौतरा बनिस मंदिर ईके चक्कर में। 

1 comment:

Unknown said...

और वो निपट गया चौतरे पे, कल सबेरे सबेरे।