Feb 8, 2014

इक छोटी कहानी

बहती यादों को रोक
पूछा मैने,
आज किधर का रुख ?
उन गलियों का
जो अब सड़क बन चुकी ?
या उन मीठी आवाज़ों का
जो समय में घुल गयीं ?

यादों ने कहा
"तुम्हारे बचपन के
कुछ अंश पिघल रहे
कहो तो बटोर लाऊँ ?"

मैं बोला
उसकी क्या ज़रूरत
जो बीत गया सो
भूल गया ।
अब और आगे बढ़ना है ।
जाना है उस पार
जहाँ रोशनी का
समंदर बाहें फैलाये
कर रहा इंतज़ार ।

यादें मुस्कुरायीं,
हिचकिचायीं
और सहम कर बोलीं
"अपना ख्याल रखना"
फिर बदल लिया
अपना रुख ।