Oct 6, 2012

तुम ना मिली दुबारा


वो मुलाकात,
सालों पहले़ । 

इक भीगी बेंच्च,
मायूस लैम्प पोस्ट,
बूढ़ी खामोशी,
बगल के होस्टल की चकाचौंध,
मैं और तुम । 

कुछ टुकडे़ तुम्हारे,
कुछ मेरे, 
टेढ़े मेढ़े, उलटे सीधे,
आधे पौने, बहके महके, 
फटे पुराने, कोरे रंगीन,
सच्चे झूटे और कुछ खोकले, 
बिखरते गये 
और बना गये इक कहानी । 
मेरी और तुम्हारी । 

वो अनजाना एहसास,
परिचित आभास,
जम गया उस समय में,
जो बहता हि रहा । 

समय - समय बदली इस समय,
कि परिभाशा, 
पर तुम ना मिली दुबारा । 
"दोस्ती" तुम ना मिली दुबारा । 




Jul 3, 2012

बुढ़ापे की दस्तक


चलते चलते
महसूस यूँ हुआ 
परछाई मेरी 
अब बढ़ चली है. 

कल थी दबी यंही 
मेरे पैरों तले
अस्थिर, चंचल, बदलती रूप. 
आज पिघली पड़ी है 
अलसाई, सहमी, निरर्थक. 

डरता हूँ मैं 
कि कहीं ये विलीन 
ना हो जाये
उस अँधेरे में 
जो बढ़ा चला आ रहा है 
मुझे दबोचने. 

Jul 1, 2012

दूरी

संदेह से उत्पन्न भय 
भय से उत्पन्न चिंता 
चिंता से उत्पन्न खोज 
खोज से उत्पन्न वेदना 
वेदना से उत्पन्न निराशा 
निराशा से उत्पन्न उत्तेजना 
उत्तेजना से उत्पन्न क्रोध 
क्रोध से उत्पन्न जिद 
जिद से उत्पन्न ख़ामोशी 
ख़ामोशी से उत्पन्न संकोच
संकोच बढ़ता दूरी. 

Jun 4, 2012

नए का पागलपन

कुरेदना 
पाटना 
पकड़ना 
और फिर फ़ेंक देना 

हिचकियों का 
बातें बनाना 
हकलाना 
चिल्लाना 
और फिर आवाजों को 
निचोड़कर 
किसी गंगा में बहाना 

सपनो को सुखाना 
पीसना 
मसलना 
और फिर 
एक फूँक में उड़ाना

रोज़ का बहाना 
कल नया करूंगा

Apr 22, 2012

मेरी अम्मी


काठ की इक
बूढी कुर्सी 
बगल कि मेज़ 
और 
रात के खाने से 
सजी इक प्लेट. 

इक हाथ में 
फ़ोन का रिसीवर 
और 
दुसरे में इक 
भीगा कौर. 

कुछ पहचानी धुनें 
कुछ रौशनी 
थोड़ी हलचल 
बेइन्तेहाँ प्यार. 

पतली सी चिंता 
साफ विश्वास 
अटूट गर्व 
और 
स्थिर चंचलता. 

सबकी टोकरी 
मेरी अम्मी. 

किस्मत


कभी जुड़ती 
कभी मुड़ती 
कभी खिंचती
कभी रुकती 
बिछी हैं ये लकीरें 
इस काल में 
जिसका अंत 
निश्चित है 
कभी किसी रोज़