Aug 23, 2022

उम्मीद की उम्मीद से



शाम होने को है,

पर ना ही दिये जलाये,

और ना ही चूल्हा फूँका।

एक उम्मीद का तिरस्कार कर 

बस चारपाई बिछाई,

और पिरोने लगी बिखरी उम्मीदें। 


जली-बुझी बूढ़ी उम्मीदों के साथ, 

थोड़ी घमंडी अर्थहीन उम्मीदें। 

बिखरी परायी उम्मीदों के बराबर, 

वो सारी छोटी-छोटी उम्मीदें। 

और बीच-बीच में थोड़ी-थोड़ी 

झूठी बहकी उम्मीदें। 


अक्ल का वरदान,

लुटाने के बाद। 

बेसहारा, 

जर्जर,

अकेली,

एक उम्मीद का तिरस्कार कर 

बस बिछाई चारपाई,

और बुनने लगी उम्मीदें। 

बदलाव की। 


दूसरों की उम्मीद से,

फुसलाती और सहलाती 

स्वयं के अंश को।

इंतज़ार में उस सच्ची उम्मीद की,

जो मेरी खोज हो।


उम्मीद की उम्मीद से

थकी नही मैं,

बनी और बेशरम। 

बस एक आख़िरी उम्मीद की उम्मीद से।