Jan 26, 2022

ठूँठा पेड़

   Flyover से उतरते ही 

दूर। वहाँ।  

निष्ठुर यातायात के ज्वार-भाटे में अड़ा

मेरा मित्र, मेरा प्रकाश स्तम्भ।

वृक्ष योनि से मुक्त।

वो एक सूखा पेड़। 


ना फूल उसमें, ना कोई फल,

और ना ही गहरी छाया। 

पत्तियों ने भी त्याग दिया जिसकी ठूँठी काया। 


जात नही, पहचान भी शून्य 

और नही परिजन का साया। 

इस एकाकी जीवन में उसने,

क्या खोया, क्या पाया। 


मिला क्या? बस 

काले-सुफ़ेद पन्नी के चीथड़े।

सुना क्या? बस 

सिसकती गाड़ियों की चीखें। 

देखा क्या? बस 

बसती-उजड़ती, निरंतर गिरती सभ्यताएँ। 


परंतु अचल रहा वो।

शालीन, तटस्थ

निर्भय, उन्मत्त। 

नही कूचा शहर से,

जैसे हम पलायित होते हैं। 

प्रतिकूल मौसमों से। 


वो।

मेरे साहस का प्रतिबिम्ब।

मेरे उत्साह का चिन्ह। 

मेरे अस्तित्व का अनुस्मारक। 

मेरी आकांक्षा का समर्थक। 

मेरा मित्र, मेरा प्रकाश स्तम्भ।

वृक्ष योनि से मुक्त।

वो एक सूखा पेड़। 

Jan 11, 2022

चाय की व्यथा


    मिश्रा जी झल्लाए 

जब पहुँचे घर बौराए 

सिर्फ़ पानी का ग्लास देख

तबियत से चिल्लाए।


चाय कहाँ है?


सहमी सी बीवी झटपट भागी रसोई

भगोना चढ़ाया, गैस जलाई, कूँटी अदरक और चीनी मिलाई 

चाय की पत्ती संग डाला दूध

फिर उबाला कई दाँई। 


चाय की पहली चुस्की 

ना थी कड़क बल्कि फुसकी। 

बीवी भी चुप, चाय भी चुप 

ना जाने क़िस्मत फूटी किसकी?


बीवी तो जा सकती मायके 

पर चाय आभागिन के मत्थे 

अनगिनत ज़ायक़े। 


कोई चाहे मीठी

कोई कड़क। 

कोई फीकी

तो कोई चटक।


कोई माँगे इंग्लिश 

कोई जाफ़रानी  

किसी की चाहत हर्बल 

तो किसी को बस हरा पानी। 


मेरी, उसकी, इसकी, सबकी 

उबलती पैदाइशें। 

उँगलियों के चिन्हों जितनी 

बेचारी चाय की फ़रमाइशें। 


किसी की आसक्ति

तो किसी का प्रेम। 

किसी की लत

तो किसी की बस औपचारिकता। 


लेकिन चाय से किसी ने पूछा कभी? 


क्या तुम्हें है पसंद दूध का संग?

दोहरा उफान।

अदरक की गरमाहट ,

या दालचीनी का घमंड?


नही। 

क्योंकि चाय भी शायद 

स्त्री है।