Oct 22, 2014

दीवाली

कमरा आया आंगन को
दिवारों में टंगी 
जब सीढ़ीयॉं । 
नीली-सफ़ेदी गलियारों की 
बिछाने लगी 
जब सर्दियॉं । 
पहचानी आवाजों ने 
घर को 
जब भिगोया । 
और दिखा सुतली बम 
जब बुद्धु की माई दुकान 
तब महकी दीवाली । 

छोटी बड़ी की कश्मकश 
अठ्ठन्नी से भिड़ती 
चवन्नी की ललकार । 
रॉकेट को पकड़ती 
चटाई की किलकार । 
अनार को चिढ़ाती 
फुलझड़ी की चुगलियां । 
और आपस मे ही 
दंगल करते 
उज्जड बुलेट बम 
जब सिमटे इन दियों में 
तब खिली दीवाली । 

May 4, 2014

रिश्तों की टोली

रेडियो में बजते
हर गाने के साथ,
मन ने भरपूर
छलांगे मारी ।

कभी इस शहर
तो कभी उस नगर ।

गर्म हवाओं के
बहकावे में,
सालों जमी धूल भी
कुछ हल्की हुई
बौराई
तिलमिलाई ।

भर्राई
अनेक आवाजें कानों में ।

और गले में ?
इक उफ़नता सैलाब
जो बस तैयार था
सांसो को निचोड़ने में ।

खूब निकली आज
कुछ रिश्तों की टोली । 

Mar 26, 2014

आज का दिन

आज दिन कुछ
नया सा था ।

रोज़ की तरह
सूखा नही
थोड़ा भीगा
थोड़ा शरारती
थोड़ा अपना ।

खुश एेसा की
मानो बचपन
ज़िद्दी एेसा की
मानो बुढ़ापा ।

हुआ कुछ नही
वही सुबह रही
वही दोपहर
वही शाम ।

पर हर पहर
सिर्फ बदला मैं ।

आज मैने
तुमसे की बातें । 

Feb 8, 2014

इक छोटी कहानी

बहती यादों को रोक
पूछा मैने,
आज किधर का रुख ?
उन गलियों का
जो अब सड़क बन चुकी ?
या उन मीठी आवाज़ों का
जो समय में घुल गयीं ?

यादों ने कहा
"तुम्हारे बचपन के
कुछ अंश पिघल रहे
कहो तो बटोर लाऊँ ?"

मैं बोला
उसकी क्या ज़रूरत
जो बीत गया सो
भूल गया ।
अब और आगे बढ़ना है ।
जाना है उस पार
जहाँ रोशनी का
समंदर बाहें फैलाये
कर रहा इंतज़ार ।

यादें मुस्कुरायीं,
हिचकिचायीं
और सहम कर बोलीं
"अपना ख्याल रखना"
फिर बदल लिया
अपना रुख ।