Oct 6, 2012

तुम ना मिली दुबारा


वो मुलाकात,
सालों पहले़ । 

इक भीगी बेंच्च,
मायूस लैम्प पोस्ट,
बूढ़ी खामोशी,
बगल के होस्टल की चकाचौंध,
मैं और तुम । 

कुछ टुकडे़ तुम्हारे,
कुछ मेरे, 
टेढ़े मेढ़े, उलटे सीधे,
आधे पौने, बहके महके, 
फटे पुराने, कोरे रंगीन,
सच्चे झूटे और कुछ खोकले, 
बिखरते गये 
और बना गये इक कहानी । 
मेरी और तुम्हारी । 

वो अनजाना एहसास,
परिचित आभास,
जम गया उस समय में,
जो बहता हि रहा । 

समय - समय बदली इस समय,
कि परिभाशा, 
पर तुम ना मिली दुबारा । 
"दोस्ती" तुम ना मिली दुबारा ।