Sep 1, 2013

इक शहर

इक शाम ढली
और बस
ये शहर बन बैठा
अजनबी ।

किसी किस्म की
नाराज़गी का
एहसास बिखेरता
रूठा, मगर
उदास ।

कुछ ना कहता
बस, देखता
मुझे हर वक्त
गुज़रते अपने
ईर्द गिर्द ।

किसी किस्म की
खामोशी का
शोर मचाता
शायद करता इंतज़ार
कि मैं ना देखुं
उस नये आसमान को
जो अब मेरा नया
प्रेम है ।

Jun 16, 2013

पापा


पापा

सिर्फ इक शब्द नही 
अनगिनत स्मृतियों का 
वो एहसास है
जो असीमित है
यादों से परे 
मेरे विचारों में । 

बचपन की मैं क्या कहुं 
मैं तो अब भी उलझा रहता हूं 
पर जो बड़ा हुआ 
तो 
जाना 
समझा कि 
हमारी भूमिकायें 
बदल चुकी हैं । 

मैं आप 
और आप मैं ।

अब मैं 
मना करता हूं 
धूप में निकलने को 
सीढ़ी चढ़ने को 
ठंडे पानी से नहाने को 
भारी बोझ उठाने को 
स्कूटर तेज़ चलाने को 
T.V. ज्यादा देखने को 
और चाय रोज़ पीने को । 

हमने कभी कहा नही 
पर 
Thank You पापा 
ये सिखाने को 
कि प्यार किसे कहते हैं । 

Apr 5, 2013

मैं कल ना आऊंगा


कहने को 
ईंट की चार दिवारें
और एक छत पर
जिसके ४८२ sq ft में 
आज छोड़े जा रहा हूं 
अपना सब कुछ । 

कल ना आऊ़गा 
वापस मैं रोज़ की तरह । 
अब ना होंगी वो
बातें, 
दुलार, 
खामोश रातें और
भीगी बरसातें । 

तुम भी जुड़ गये 
आज उस 
बैडमिंटन के रैकेट, 
होली की वो स्टील वाली पिचकारी,
MME के टूटे बैट 
और चंदा मामा की उन 
अनेक किताबों से 
जिसे वो पुराना 
घर बैठा है संजोये 
सिर्फ मेरी स्मृतियों में ।

काश कि तुम बोल पाते 
और खत्म करते मेरे 
जाने का ये सिलसिला ।