चलो आज रंगों की ,
बदमाशी में भीग जायें ।
पीले के प्यार को लपेटें ,
लाल के गुस्से को पिघलाएं ।
बैंगनी की चटक ओढ़कर ,
गुलाबी शर्म में बहक जायें ।
नीले को आसमान से चुराएं ,
फिर हरे को घोल कर पी जायें ।
सारी बातें भूलकर ,
क्यों ना इन्द्रधनुष बन जायें ?
चलो आज रंगों की ,
बदमाशी में भीग जायें ।
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