ज़रूरी होता है कभी
एकाकी होना.
स्वयं कि सुनना और
उन्मुक्त बहना.
क्यों?
परवाह करके उनकी
असफलता सहना.
फिर कोसना और
निराश रहना.
क्यों?
कभी कभी मन का
विद्रोही बनना.
स्वयं का साथ पर
दूसरों को चोट देना.
लेकिन क्या यह सोचना
आवश्यक है?
क्यों विवश है मन आज
इन तुच्छ बातों को लेकर?
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