एक समय बाद,
रौशनी का मुरझाना,
बच्चों का बौराना,
और आवाजों का ठिकाना,
मिट जाना।
लेकिन वही पुराना,
तुम्हारा,
आना या ना आना।
फिर,
सोच का सिमटना,
व्यभिचार का पनपना,
चरित्र का हकलाना,
बौखलाना।
लेकिन वही पुराना,
तुम्हारा,
आना या ना आना।
अब,
इंतज़ार का सिसकना,
धैर्य का बिलखना,
करवटों की उत्तेजना,
और सबका यही पूछना की,
नींद,
तुम्हारी हट को कैसे मनाना।
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