सुबह हुई,
आइना देखा।
सब कुछ ठीक था।
फिर चक्र बढ़ा ।
किया काम,
वही जो होता आया है।
एक और चक्र बढ़ा ।
सोचा वही ,
जो सोचता आया हूँ।
चक्र की एक और बढ़त ।
बाहर निकला ,
गया वहीं जहाँ जाता हूँ।
अन्तिम चक्र ।
हुआ वही ,
जो होना था।
आख़िर विश्वास,
गया कहाँ।
2 comments:
I am impressed. Are these really written by you Abs?
i wrote it long back.. i have stopped writing now...the last poem i wrote was in 2003.
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