May 17, 2006

विश्वास का अंत

सुबह हुई,
आइना देखा।
सब कुछ ठीक था।

फिर चक्र बढ़ा ।
किया काम,
वही जो होता आया है।

एक और चक्र बढ़ा ।
सोचा वही ,
जो सोचता आया हूँ।

चक्र की एक और बढ़त ।
बाहर निकला ,
गया वहीं जहाँ जाता हूँ।

अन्तिम चक्र ।
हुआ वही ,
जो होना था।

आख़िर विश्वास,
गया कहाँ।

2 comments:

Sunny Sand said...

I am impressed. Are these really written by you Abs?

अभिषेक said...

i wrote it long back.. i have stopped writing now...the last poem i wrote was in 2003.