काठ की इक
बूढी कुर्सी
बगल कि मेज़
और
रात के खाने से
सजी इक प्लेट.
इक हाथ में
फ़ोन का रिसीवर
और
दुसरे में इक
भीगा कौर.
कुछ पहचानी धुनें
कुछ रौशनी
थोड़ी हलचल
बेइन्तेहाँ प्यार.
पतली सी चिंता
साफ विश्वास
अटूट गर्व
और
स्थिर चंचलता.
सबकी टोकरी
मेरी अम्मी.
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