Apr 22, 2012

किस्मत


कभी जुड़ती 
कभी मुड़ती 
कभी खिंचती
कभी रुकती 
बिछी हैं ये लकीरें 
इस काल में 
जिसका अंत 
निश्चित है 
कभी किसी रोज़ 

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