वो मुलाकात,
सालों पहले़ ।
इक भीगी बेंच्च,
मायूस लैम्प पोस्ट,
बूढ़ी खामोशी,
बगल के होस्टल की चकाचौंध,
मैं और तुम ।
कुछ टुकडे़ तुम्हारे,
कुछ मेरे,
टेढ़े मेढ़े, उलटे सीधे,
आधे पौने, बहके महके,
फटे पुराने, कोरे रंगीन,
सच्चे झूटे और कुछ खोकले,
बिखरते गये
और बना गये इक कहानी ।
मेरी और तुम्हारी ।
वो अनजाना एहसास,
परिचित आभास,
जम गया उस समय में,
जो बहता हि रहा ।
समय - समय बदली इस समय,
कि परिभाशा,
पर तुम ना मिली दुबारा ।
"दोस्ती" तुम ना मिली दुबारा ।