
आज हँसी का एक टुकडा पाया,
छोटा ताज़ा, और गीला पाया।
सुंदर, चंचल और हल्का पाया।
लपक - झपक, उछल कूद करता पाया।
पर फिर उसने मुझे देखा,
मैंने उसे,
दोनों हँसे,
और आगे चल दिए।
और इन सब बहावों के बीच,
एक स्थिरता सी बस गई है मुझमे।
जो ना रुकने देती है, और,
ना ही चलने देती है।
सम्भव है की शायद,
खो चुका हूँ मैं,
उस जीवन शैली को,
जो कभी मैंने जिया ही नही।