एक धारा ....
गुमसुम,
उछलती - बिलखती,
कूदती - फांदती,
दौड़ती,
बिना आवाज़ ....
यहाँ भीतर,
मेरे अन्दर।
शिथिल चेतना,
की शिकार।
किसी खोई हुई,
पहचान का प्रकार।
बहती निरंतर ....
यहाँ भीतर,
मेरे अन्दर ।
आश्चर्य की !!
जीवन का एक,
पर्याय यह भी।
खामोश पानी की एक धारा ।
1 comment:
There is some good poetry on your blog but it seems u have not updated the blog for long...Keep writing:)
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