Jan 26, 2022

ठूँठा पेड़

   Flyover से उतरते ही 

दूर। वहाँ।  

निष्ठुर यातायात के ज्वार-भाटे में अड़ा

मेरा मित्र, मेरा प्रकाश स्तम्भ।

वृक्ष योनि से मुक्त।

वो एक सूखा पेड़। 


ना फूल उसमें, ना कोई फल,

और ना ही गहरी छाया। 

पत्तियों ने भी त्याग दिया जिसकी ठूँठी काया। 


जात नही, पहचान भी शून्य 

और नही परिजन का साया। 

इस एकाकी जीवन में उसने,

क्या खोया, क्या पाया। 


मिला क्या? बस 

काले-सुफ़ेद पन्नी के चीथड़े।

सुना क्या? बस 

सिसकती गाड़ियों की चीखें। 

देखा क्या? बस 

बसती-उजड़ती, निरंतर गिरती सभ्यताएँ। 


परंतु अचल रहा वो।

शालीन, तटस्थ

निर्भय, उन्मत्त। 

नही कूचा शहर से,

जैसे हम पलायित होते हैं। 

प्रतिकूल मौसमों से। 


वो।

मेरे साहस का प्रतिबिम्ब।

मेरे उत्साह का चिन्ह। 

मेरे अस्तित्व का अनुस्मारक। 

मेरी आकांक्षा का समर्थक। 

मेरा मित्र, मेरा प्रकाश स्तम्भ।

वृक्ष योनि से मुक्त।

वो एक सूखा पेड़। 

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