इस मन में कहीं.
हकलाती,
टूटते शब्दों को
गुनगुनाती,
थोड़ी खुश,
थोड़ी घबराई,
थोड़ी व्याकुल
थोड़ी पराई.
उत्सुक
इस तारीख पर
जो भर लायी है
उम्मीदों को अपनी
मुट्ठी में.
अब इंतज़ार है
की बस मुट्ठी खुले
और बिखेर दे
जीने का उत्साह
मुझमें
और सबमें.
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