कौन हूँ मैं?
एक बच्चा जो
कोशिश कर रहा है
अपने टूटे खिलौने को
नया जीवन देने की
या कि
एक बूढा जो
देख नहीं सकता
सुन नहीं सकता
चल फिर नहीं सकता
बस कर सकता है तो यह
कि चारपाई पैर लेट के
पंखों के डैनो को घूमता देखे
और करे इंतज़ार
उसके और
अपने रुकने का.
कौन हूँ मैं?
ख़त्म होती रात की
बैंगनी चादर? जो
फैली है समस्त आकाश में,
बदलती रंग
सूरज की हर किरण के साथ
या कि
शाम कि बिखरी धुल
जो
एक जिद पे अड़ी है
रूठी है
नाराज़ है
और शायद इसलिए
स्थिर होने का नाम नहीं लेती.
आखिर कौन हूँ मैं?
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