Aug 22, 2010

तितर बितर

लम्हों की पहचान
उनके अस्तित्व
से परे
निर्भर होती है -
उन्ही लम्हों में
जीवित "मैं" और "तुम" पर.
एक पहचान ऐसी
जो जीने को
मजबूर कर दे.
एक ऐसी
जो कहे कि
अब बहुत हुआ.

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