Apr 29, 2010

सफ़र

जाना तो है
कि मंज़िल मिली
नहीं अब तक.

आया था यहाँ कुछ
पाने,
कुछ संजोने,
कुछ बटोरने.

फिर रुका कुछ दिन
जिसमे मिला सबसे
थोडा स्नेह,
थोड़ी आशाएं
और थोड़ा विश्वास.

आज जा रहा हूँ,
लिए
कुछ हंसी कि बूँदें
और कुछ
अटूट रिश्ते.

क्योंकि
जाना तो है
कि मंज़िल मिली
नहीं अब तक.

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