बंद कार के अंदर,
बाहर की आवाज़ें,
सुनाई नहीं देतीं।
उसी बंद कार के,
अंदर से आवाज़ें,
बाहर नहीं जातीं।
बंद कार के शीशे,
एक दुनिया को,
दो बना देते हैं।
बंद कार में,
बंधीं, रहती है दुनिया।
और उसी बंद कार,
के बाहर की दुनिया,
रहती है बहती।
बंद कार, चलती- रुकती,
रहती है बढ़ती।
उसी बंद कार को,
छूती, टकराती आवाज़ें,
थमीं हैं रहती।
वही आवाज़ें,
उम्र से बँटी,
सिमटती- बिखरती,
रास्तों पर या फिर ट्रैफिक सिग्नलों पर,
रहती हैं मरती।
और कार के,
अंदर की आवाज़ें?
किंचित,
आह न भरती।
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