Jul 24, 2019

अमरूद की दोस्ती

अमरूद,
तुम्ही मेरे सच्चे दोस्त रहे ।
जब गर्मी मुझे पका जाती
उबा देती,
दिनों के अंतहीन विराम से।
और जब स्कूल की
नयी कक्षा का
जोश बन जाता दोष ।
तब तुम फूट पड़ते
बरसात के साथ,
सौंधी खुशबू ओढ़े।

पर
भाव तुम्हारा बिगड़ैल रहता,
कड़क, खट्टा और पथरीला ।
जैसे की मेरा,
हर सुबह की ब्रम्ह वेला में।
जब पापा की "उठो बेटा उठो" की रट,
लगातार,
लालटेन की कुलबुलाती रोशनी संग,
पेचकस करती रहती कानो में ।

गुड़ सी मीठी धूप,
जब खिलती सर्दीयों में।
तब कहीं तुम पिघलते,
और नर्म हो जाते
कच्ची गरी जैसे
रसभर, विनम्र।
कभी गुलाबी, कभी सुफेद ।

तुम्हे काटने का,
नमक-मिर्च लपेटने का,
और फिर चुटकियों सी फांक में,
खाने का।
सुख, संतोष और स्वाद
अवर्णनीय है, उसी तरह
जैसे मम्मी की पीसी हुयी
तुम्हारी चटनी ।

अंततः तुम्ही वो दोस्त रहे,
जिसने मन को सर्वदा तृप्त किया।
कल भी
और आज भी ।
तकलीफ बस इतनी,
कि अब जब भी मिलते हो
एहसास करा देते हो
परदेस का ।

1 comment:

Unknown said...

अंतः करन की आवाज़ है। ये अमरूद नहीं बिछड़े यार है।