कमरे में
शायद कभी
था इक दरवाज़ा .
मासूम सा
आवारा .
बदमाश सा
शर्मीला .
एक बवंडर सा
बिदका हुआ .
सिर चढ़ा
उस आहट को .
दब चुकी है जो
फिसलती यादों में.
शायद कभी
था इक दरवाज़ा .
मासूम सा
आवारा .
बदमाश सा
शर्मीला .
एक बवंडर सा
बिदका हुआ .
सिर चढ़ा
उस आहट को .
दब चुकी है जो
फिसलती यादों में.
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