नखरों की फ्रॉक
उस पर
इतराती दो चोटियाँ.
खुरापाती पहेलियों
की खूब सारी सहेलियां.
इक पगली,
गुल्लकों में
संजोती
हर दोपहरी की कहानियां.
और कॉलेज के अड्डों
पर खींचती सबके कान.
जो रम जाये वही दोस्त
वरना नापे दूकान.
वो पगली,
लुढ़कती बढ़ चली
बिना हेलमेट,
बन हनुमान.
तोड़ने परबत और
खोजने पहचान.
जब मिली मुझसे
तो बस इतना कहा
"तुम कितने पागल हो".
उस पर
इतराती दो चोटियाँ.
खुरापाती पहेलियों
की खूब सारी सहेलियां.
इक पगली,
गुल्लकों में
संजोती
हर दोपहरी की कहानियां.
और कॉलेज के अड्डों
पर खींचती सबके कान.
जो रम जाये वही दोस्त
वरना नापे दूकान.
वो पगली,
लुढ़कती बढ़ चली
बिना हेलमेट,
बन हनुमान.
तोड़ने परबत और
खोजने पहचान.
जब मिली मुझसे
तो बस इतना कहा
"तुम कितने पागल हो".