पापा
सिर्फ इक शब्द नही
अनगिनत स्मृतियों का
वो एहसास है
जो असीमित है
यादों से परे
मेरे विचारों में ।
बचपन की मैं क्या कहुं
मैं तो अब भी उलझा रहता हूं
पर जो बड़ा हुआ
तो
जाना
समझा कि
हमारी भूमिकायें
बदल चुकी हैं ।
मैं आप
और आप मैं ।
अब मैं
मना करता हूं
धूप में निकलने को
सीढ़ी चढ़ने को
ठंडे पानी से नहाने को
भारी बोझ उठाने को
स्कूटर तेज़ चलाने को
T.V. ज्यादा देखने को
और चाय रोज़ पीने को ।
हमने कभी कहा नही
पर
Thank You पापा
ये सिखाने को
कि प्यार किसे कहते हैं ।
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