उठे तो कुछ ऐसे
कि जैसे
इतवार की शिथिल सुबह .
फिर ठहर जाय
कि जैसे
यादों में बिखरी इक दोपहर .
और थमें तो इस तरह
कि जैसे
किसी के आने की आतुरता .
दिन और रात
कल और आज
सुखी और गीली
लाल और पीली
यूँही बस चलती रहें
तुम्हारी मेरी बातें.