कमरा आया आंगन को
दिवारों में टंगी
जब सीढ़ीयॉं ।
नीली-सफ़ेदी गलियारों की
बिछाने लगी
जब सर्दियॉं ।
पहचानी आवाजों ने
घर को
जब भिगोया ।
और दिखा सुतली बम
जब बुद्धु की माई दुकान
तब महकी दीवाली ।
छोटी बड़ी की कश्मकश
अठ्ठन्नी से भिड़ती
चवन्नी की ललकार ।
रॉकेट को पकड़ती
चटाई की किलकार ।
अनार को चिढ़ाती
फुलझड़ी की चुगलियां ।
और आपस मे ही
दंगल करते
उज्जड बुलेट बम
जब सिमटे इन दियों में
तब खिली दीवाली ।