आज दिन कुछ
नया सा था ।
रोज़ की तरह
सूखा नही
थोड़ा भीगा
थोड़ा शरारती
थोड़ा अपना ।
खुश एेसा की
मानो बचपन
ज़िद्दी एेसा की
मानो बुढ़ापा ।
हुआ कुछ नही
वही सुबह रही
वही दोपहर
वही शाम ।
पर हर पहर
सिर्फ बदला मैं ।
आज मैने
तुमसे की बातें ।
नया सा था ।
रोज़ की तरह
सूखा नही
थोड़ा भीगा
थोड़ा शरारती
थोड़ा अपना ।
खुश एेसा की
मानो बचपन
ज़िद्दी एेसा की
मानो बुढ़ापा ।
हुआ कुछ नही
वही सुबह रही
वही दोपहर
वही शाम ।
पर हर पहर
सिर्फ बदला मैं ।
आज मैने
तुमसे की बातें ।