कहने को
ईंट की चार दिवारें
और एक छत पर
जिसके ४८२ sq ft में
आज छोड़े जा रहा हूं
अपना सब कुछ ।
कल ना आऊ़गा
वापस मैं रोज़ की तरह ।
अब ना होंगी वो
बातें,
दुलार,
खामोश रातें और
भीगी बरसातें ।
तुम भी जुड़ गये
आज उस
बैडमिंटन के रैकेट,
होली की वो स्टील वाली पिचकारी,
MME के टूटे बैट
और चंदा मामा की उन
अनेक किताबों से
जिसे वो पुराना
घर बैठा है संजोये
सिर्फ मेरी स्मृतियों में ।
काश कि तुम बोल पाते
और खत्म करते मेरे
जाने का ये सिलसिला ।